#दिसम्बर की रात
दिसम्बर की वो एक ठंडी रात थी।
जब हम हाथों में हाथ लिए,
#मालरोड की ठंडी सड़क पर
बातों में खोए चले जा रहे थे ।
मुझे याद है -----
तब तुमने अपने #पराये होने की सूचना दी थी!
कितना रोइ थी मैं उस समय;
तब मेरे #ठिठुरते हुए लबों पर
तुमने अपने गर्म होठ रख दिये थे ,
तुम्हारी बांहों के धेरे में
मैं कसमसाकर रह गई थी।
तब मैं आवाक मूर्ति बनी---
तुम्हारी बातों को,
कानों में शीशे की तरह उड़ेल रही थी।
क्या उस समय तुम पाषण नही बन गए थे?
तुम्हारे ह्दय के उदगार कहाँ लुप्त हो गए थे।
कितना मार्मिक संवाद था वो ?
मेरी आँखों से अश्रु की धारा बहे जा रही थी।
ओर तुम तल्लीनता से अपनी होने वाली का विवरण बता रहे थे।
ऐ काश ! उस समय मैं होश में होती?
निर्दयी ! मैं अपने आंसू दिखा पाती ?
आज इस सुनी सड़क को
अल्पक निहार रही हूं---
दिसम्बर की ठंड बढ़ती जा रही है
ओर मैं थके - थके कदमों से,
अपने नीड़ पर लौट रही हूं --------
---दर्शन के💝 दिल से
2 टिप्पणियां:
वाह बहुत खूब जी। बढिया लिखा
Thnx😀
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