अमृतसर यात्रा :--
भाग 15
हरिद्वार भाग - 4
(अंतिम क़िस्त)
5 जून 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से ज्वाला माता,चिंतपूर्णी माता आनन्दपुर साहेब ओर मनिकरण के बाद हमारा काफिला हरिद्वार में कल से आ गया..
कल हरिद्वार घूमकर आज ऋषिकेश आ गए...
अब आगे.....
हम गीताभवन से नाश्ता निपटाकर बाहर निकले धूप अपनी चरम सीमा पर थी...ओर गर्मी के तो क्या कहने फूल बरस रहे थे वो भी आग में डूबे हुए😂 ख़ेर,12 बज रहे थे घड़ी के साथ हमारे भी ओर हम पैदल चले जा रहे थे... स्थानीय लोगों से पूछते - पूछते की नीलकंठ जाने के लिए वाहन किधर मिलेगा...?
किसी ने बताया की काली कमली वाली धर्मशाला से सीधा 1 km चलने के बाद आपको स्टैंड मिल जायेगा वहां जीपें तैयार खड़ी मिलेगी।
ख़ेर, हम कालीकमली वालों की धर्मशाला ढूंढते- ढूढते काफी दूर तक पैदल चलते रहे,फिर जब धर्मशाला मिली तो स्टेण्ड ढूंढने में हालत खराब हो गई आखिर में जीप स्टेण्ड ढूंढ कर ही दम लिया ,अब हमारी हालत बहुत खराब थी मुझसे एक कदम भी आगे बढ़ा नही जा रहा था उस पर वहां का अजीब कानून की 12 सदस्य एक जीप में जायेगे ओर जब तक 12 सदस्य नही होते आपको न टिकिट मिलेगा और न ही जाना नसीब होगा।अब हमको 12 सदस्य इक्कठे करने थे जो हमारे साथ जा सके और हमारे साथ ही आ सके ...किराया था एक आदमी के आने-जाने का 150 ₹..!
वहां जाकर हमको डेढ़ घण्टे में दर्शन कर के वापस आना था..अगर नही आये तो हमारी जीप चली जायेगी।
यानी कि फिर राम राम जपो..!हमने सोचा कि हम प्रायवेट कार कर लेते हैं लेकिन उसका किराया 1,500 ₹ सुनकर हमारे होश गुम हो गए तो हमने 12 सदस्य ढूंढने में ही अपनी भलाई समझी लेकिन 12 यात्री ढूंढना लोहे के चने चबाने जैसा था क्योंकि ज़्यादातर लोग ग्रुप में थे वो अपने लोगों के साथ आते और जीप में बैठकर फुर्ररर से निकल जाते हमारा मुंह चिढ़ाते हुए ओर हम सब मायूस हो उनको देखते रहते .. आखिर बड़ी मुश्किल से हमने 6 लोगों को इक्कठा किया और उसी में हमको 1घण्टे से भी ज्यादा टाईम हो गया 😰
आखिर थक हारकर हम बैठ गए और सोच लिया कि अब हम नीलकंठ बाबा के दर्शन करने नही जायेगे... हमने दूर से बाबा को नमन किया और वापसी की राह पकड़ी।
सबका मूड बहुत खराब हो गया था, ऊपर से थकान भी हो गई थी, मेरा तो सबसे ज्यादा हाल खराब था... क्योंकि फिर से मुझे उतना ही पैदल चलना था जितना चलकर हम यहां तक आये थे,अब क्या करे हमारे वश में कुछ नही था,हम वापस चल दिये लक्ष्मण झूले की तरफ... यहां की व्यवस्था बिल्कुल बेकार थी।बाद में हमने सोचा कि यार 1500 हजार में ही तो आना जाना था आराम से कार कर लेना था क्योंकि 500 रु तो वैसे भी लग ही रहे थे और 1हजार खर्च करने में क्या जाता कम से कम हम दर्शन तो आराम से करते लेकिन क्या करे ये विचार जब आया जब हम लक्ष्मण झूले तक आये और पूरी तरह शांत हो गए थे ।
खेर, वहां से हम वापस लौटकर लक्ष्मण झूले पर आए तो मन प्रसन्न हुआ😄 बहुत खूबसूरत दृश्यावली थी.. ठंडी हवा के झोकों से सारी थकान उतर गई ...हिलते हुए पुल को पार करना अपने आपमें ही एक रोमांच - सा था...नीचे बहती पवन पावनी गंगा और उसमें राफ्टिंग करते नवयुवक... शानदार अहसास था। हम काफी देर तक उस झूले पर धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे...
लेकिन वापसी में हम फिर परेशान हो गए । #लक्ष्मण झूला पार करके जब हरिद्वार लौटने के लिए ऑटो को ढूंढने लगे तो हमारी हालत देखने लायक थी... क्योकि उस बरसती आग में 2-3 km पैदल चलने के बाद जब हमको हरिद्वार जाने का ऑटो मिला तो लगा..मानो स्वर्ग मिल गया हो 😂😂😂
100₹ में हमने एक ऑटो किया जिसमें बैठकर हम वापस हरिद्वार स्थित अपनी धर्मशाला इंडिया टेम्पल में आ गए।
कुछ देर आश्रम में आराम करके हम भारत भवन देखने चल दिये.. वाकई में बहुत सुंदर मन्दिर बनाया था, उसमें शाम के वक्त लाइटिंग होती थी और बहुत सुंदर झाकियां बनाई थी जिसे देखने काफी लोग झुंड के झुंड आ रहे थे यहां अंदर आने का 10₹ टिकिट था।हमने भी टिकिट कटवाया ओर अंदर झाकियां देखने लगे।
कल हमको हरिद्वार से वापस दिल्ली निजामुद्दिन जाना था...क्योकि कल ही हमारी बम्बाई की टिकिट बुक थी परंतु हरिद्वार की भीड़ को देखते हुए हमको ट्रेन में जगह मिलना मुश्किल लग रहा था ,बसें भी फूल थी, लेकिन रूकमा के लड़के गुडन ने पता नहीं कैसे हमारी 3 टिकिट कन्फर्म करवा दी सुबह 6 बजे की ट्रेन में 😊 ओर हमारी सारी चिंताएं हर ली।
जय गंगा मैया👏
रात का खाना हमने धर्मशाला में ही खाया और मन्दिर के एक शख्स के द्वारा रात 10 बजे हमने एक ऑटो वाले को बुक किया क्योंकि कल सुबह 6 बजे हमारी ट्रेन थी और हमको सुबह 5 बजे तक स्टेशन पहुंचना था जो भीड़ के रहते सम्भव नही लग रहा था ख़ेर, स्टेशन तक ऑटोवाले ने 400₹ लिए जो काफ़ी महंगे थे, वो 400सो रुपये मुझे आजतक अखरते हैं। पर क्या करे मुसीबत में गधे को भी बाप बनाना पड़ता हैं😂😂
सुबह हमारे जागने से पहले ही ऑटो वाला आ गया और हम समय से पहले स्टेशन पर पहुंच गए । थोड़ी देर बाद हमारी ट्रेन दिल्ली की तरफ भाग रही थी जहां शाम को हमको राजधानी एक्सप्रेस पकड़नी थी ।
तो हरिद्वार को जय श्रीकृष्ण बोलकर हमने इस यात्रा की इतिश्री की🙏
तीन सहेलियों की ये दमदार यात्रा यही खत्म होती हैं😂😂😂
इंंडिया टेम्पल की झांकीयां
2 टिप्पणियां:
Bahut badhiya
Thnx भाई
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